समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code)
समान नागरिक संहिता सामाजिक मामलों से सम्बन्धित कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिए विवाह, तलाक, भरण-पोषण विरासत व बच्चा गोद लेने आदि में समान रूप से लागू होता है। इसका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद-44 में किया गया है जो राज्य के नीति निदेशक तत्व का अंग है।
हाल ही में उत्तराखण्ड विधान सभा ने समान नागरिक संहिता उत्तराखण्ड – 2024 विधेयक पारित करके देश का पहला राज्य बन गया, जिसने समान नागरिक संहिता पर कानून पारित किया है। इसके अतिरिक्त गुजरात और असम भी समान नागरिक संहिता को लागू करने पर काम कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड में लागू समान नागरिक संहिता के प्रमुख बिन्दु:
- यह कानून उत्तराखण्ड के सभी निवासियों पर लागू होगा (जनजातीय समुदायों को छोड़कर)।
- इस कानून के तहत विवाहित लोगों के लिए 60 दिनों के भीतर तथा लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए एक महीने के भीतर पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
- यह कानून पुत्र और पुत्री दोनों को पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार देता है। अब बिना वसीयत वाली संपत्ति में भी पुत्र और पुत्री दोनों को समान अधिकार प्रदान किया गया है।
- भारत के व्यक्तिगत कानून अलग-अलग एवं काफी जटिल हैं तथा प्रत्येक धर्म के लोगों को अपने विशेष कानूनों का पालन करना होता है।
भारत के व्यक्तिगत कानून:
- भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925- ईसाई, पारसी, और यहूदी समुदाय पर लागू
- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 – हिन्दु, सिख, जैन व बौद्ध समुदाय पर लागू
- मुस्लिम पर्सनल लॉ – मुस्लिम समुदाय पर लागू
- विशेष विवाह अधिनियम – यह अंतर धार्मिक विवाह को मान्यता देता है।
समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क:
- पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा मिलेगा।
- राष्ट्रीय एकता और एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- लैंगिक असमानता कम होगी।
- कानूनों का सरलीकरण संभव हो जाएगा।
- यह व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध करता है। इससे सम्बन्धित प्रावधान संविधान में दिए गए हैं, जैसे अनु0 – 441
विपक्ष में तर्क
- समुदायों के बीच आम सहमति का अभाव
- संघीय ढांचे पर खतरा
- धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता पर खतरा
इस प्रकार देखा जाए तो समान नागरिक संहिता (UCC) समानता, न्याय और गैर-भेदभाव के सिद्धान्तों को आधार बनाते हुए सभी के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित करे तथा मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों की समीक्षा की जाये।