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भारत की शिक्षा प्रणाली

भारत की शिक्षा प्रणाली

  • शिक्षा का मतलब ज्ञान, सदाचार, उचित आचरण, तकनीकी शिक्षा तकनीकी दक्षता, विद्या आदि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को कहते हैं। शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं।
  • शिक्षा, समाज एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है।
  • शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है।
  • शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया।

शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के विचार:

  • शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। (महात्मा गांधी)
  • मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। (स्वामी विवेकानंद)
  • शिक्षा व्यक्ति की उन सभी भीतरी शक्तियों का विकास है जिससे वह अपने वातावरण पर नियंत्रण रखकर अपने उत्तरदायित्त्वों का निर्वाह कर सके। (जॉन ड्यूवी)
  • शिक्षा व्यक्ति के समन्वित विकास की प्रक्रिया है। (तथागत बुद्ध)
  • शिक्षा का अर्थ अन्तःशक्तियों का बाह्य जीवन से समन्वय स्थापित करना है। (हरबर्ट स्पेंसर)
  • शिक्षा मानव की सम्पूर्ण शक्तियों का प्राकृतिक, प्रगतिशील और सामंजस्यपूर्ण विकास है। (जोहान हेनरिक पेस्टलोज़ी)
  • शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक विकास का शक्तिशाली साधन है, शिक्षा राष्ट्रीय सम्पन्नता एवं राष्ट्र कल्याण की कुंजी है। (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, 1964-66)
  • शिक्षा बच्चे की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है। (‘सभी के लिए शिक्षा’ पर विश्वव्यापी घोषणा, 1990)

प्राचीन भारत शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ‘मुक्ति’ की चाह रही है ( सा विद्या या विमुक्तये / विद्या उसे कहते हैं जो विमुक्त कर दे )। बाद में जरूरतों के बदलने और समाज विकास से आई जटिलताओं से शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते गए।

इतिहास:

  • प्राचीन भारत में गुरुकुल एक प्रकार की शिक्षा प्रणाली थी, जिसमें शिष्य (छात्र) और गुरु एक ही घर में वास करते थे।
  • नालंदा, जहाँ विश्व का प्राचीनतम विश्वविद्यालय स्थित है, ने समग्र विश्व के छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपराओं की ओर आकर्षित किया है।
  • ब्रिटिश सरकार ने मैकाले समिति की अनुशंसाओं, वुड्स डिस्पैच, हंटर आयोग की रिपोर्ट और भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 के माध्यम से शिक्षा प्रणाली में कई सुधार किये, जिन्होंने समाज को आकार देने में महत्त्वप्पूर्ण भूमिका निभाई।

भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति:

  • भारत की कुल साक्षरता दर 74.04% है जो विश्व औसत 86.3% से कम है। भारत में कई राज्य राष्ट्रीय साक्षरता स्तर से थोड़ा ऊपर औसत श्रेणी में आते हैं।
  • भारत में साक्षरता में लैंगिक अंतराल 1991 में कम होना शुरू हुआ और इसमें सुधार की गति भी तेज हो गई। हालांकि, भारत में वर्तमान महिला साक्षरता दर (65.46%-जनगणना 2011) अभी भी UNESCO  द्वारा 2015 में रिपोर्ट की गई 87% की वैश्विक औसत से काफी पीछे है।

विभिन्न विधिक और संवैधानिक प्रावधान:

विधिक प्रावधान:

  • सरकार ने प्राथमिक स्तर (6-14 वर्ष) के लिये शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के एक भाग के रूप में सर्व शिक्षा अभियान (SSA) को कार्यान्वित किया है। 
  • माध्यमिक स्तर (आयु वर्ग 14-18) की ओर बढ़ते हुए सरकार ने राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के माध्यम से SSA का विस्तार माध्यमिक शिक्षा तक किया है
  • उच्चतर शिक्षा– जिसमें स्नातक, स्नातकोत्तर और एमफिल/पीएचडी स्तर शामिल हैं, को सरकार द्वारा राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) के माध्यम से संबोधित किया जाता है ताकि उच्चतर शिक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके
  • इन सभी योजनाओं को ‘समग्र शिक्षा अभियान’ की छत्र योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है

संवैधानिक प्रावधान:

  • प्रारंभ में DPSP के अनुच्छेद 45 का उद्देश्य 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिये निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना था, जिसे बाद में आरंभिक बाल्यावस्था देखभाल को शामिल करने के लिये संशोधित किया गया तथा अंततः इसके उद्देश्यों की पूर्ति न होने के कारण 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से इसे मूल अधिकार (अनुच्छेद 21A) बना दिया गया।
  • संविधान की अनुसूची 7 में संघ सूची की प्रविष्टि 64 और 65 में भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित वैज्ञानिक या तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक, व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण आदि के लिये संस्थानों को सूचीबद्ध किया गया है।

शिक्षा एक ‘राज्य के’ विषय के रूप में:

  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघीय ढाँचे का निर्माण किया तथा शिक्षा को प्रांतीय सूची में रखा।
  • स्वतंत्रता के बाद के भारत में, शिक्षा एक राज्य का विषय बनी रही।
  • हालाँकि आपातकाल के दौरान स्वर्ण सिंह समिति ने शिक्षा को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी, जिसे 42वें संविधान संशोधन,1976 के माध्यम से लागू किया गया।
  • 44वाँ संविधान संशोधन कुछ हद तक परिवर्तनों को ठीक करने का एक प्रयास था।

शिक्षा को राज्य सूची में क्यों रखा जाना चाहिये?

मूल संविधान निर्माण:

  • संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को शुरू में राज्य सूची में रखा था, क्योंकि उनका मानना ​​था कि स्थानीय सरकारें शिक्षा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में बेहतर तरीके से सक्षम हैं।

42वें संशोधन का प्रभाव: 

  • आपातकाल के दौरान शिक्षा को एकतरफा तौर पर समवर्ती सूची में डालने से संघीय ढाँचे को नुकसान पहुँचा।
  • राज्यों को शिक्षा पर विशेष नियंत्रण देने से संविधान निर्माताओं द्वारा परिकल्पित शक्ति संतुलन बहाल हो सकेगा।

राज्य-विशिष्ट नीतियाँ:

  • राज्य अपनी शैक्षिक नीतियों को अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप बना सकते हैं।
  • इससे यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षा स्थानीय आबादी की आवश्यकताओं के लिये प्रासंगिक और उत्तरदायी है और साक्षरता दर तथा शैक्षिक परिणामों में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
  • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 350A के तहत प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्रदान करने का प्रयास किया जाना चाहिये।

भिन्न-भिन्न नीतियाँ

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (National Eligibility cum Entrance Test – NEET) जैसी केंद्र सरकार की नीतियाँ अक्सर राज्य की नीतियों के साथ टकराव पैदा करती हैं, जिससे अकुशलता और वंचितता पैदा होती है।

संसाधनों का आवंटन:

  • जो राज्य अपने शैक्षिक बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण निवेश करते हैं, उन्हें केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बिना अपने निवेश को विनियमित करने और उससे लाभ उठाने का अधिकार होना चाहिये।
  • शिक्षा मंत्रालय की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा पर होने वाले व्यय का अधिकांश हिस्सा (85%) राज्य वहन करते हैं।

योग्यता निर्धारण: 

  • NEET जैसी केंद्रीकृत प्रवेश परीक्षाएँ आवश्यक रूप से विविध शैक्षिक पृष्ठभूमि के छात्रों की योग्यता या क्षमता को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं।
  • राज्यों को प्रवेश मानदंड तैयार करने में लचीलापन होना चाहिये, जिससे छात्रों की क्षमता का बेहतर आकलन और संवर्धन हो सके।
  • तमिलनाडु व्यावसायिक शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश अधिनियम 2006, जिसे मद्रास उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है, इस तर्क का समर्थन करता है कि सामान्य प्रवेश परीक्षाएँ योग्यता निर्धारित नहीं करती हैं।
  • नील ऑरेलियो नून्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अंक योग्यता का निर्धारण करने वाला कारक नहीं हैं।

जवाबदेही का मुद्दा: 

  • यदि महत्त्वपूर्ण संस्थानों को राज्य के दायरे में लाया जाता है, तो इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के संबंध में राज्य की जवाबदेही प्रवाहित तरीके से सुनिश्चित होगी।

शिक्षा को राज्य सूची में क्यों नहीं होना चाहिये?

प्राथमिक शिक्षा की स्थिति: 

  • ASER 2023 रिपोर्ट के अनुसार, 14-18 वर्ष के अधिकांश ग्रामीण बच्चे कक्षा 3 के गणितीय प्रश्नों को हल नहीं कर सकते हैं, जबकि 25% से अधिक बच्चे पढ़ नहीं सकते हैं। यह राज्यों में शिक्षा के खराब प्रशासन को दर्शाता है।

राष्ट्रीय एकीकरण एवं गतिशीलता: 

  • कोठारी आयोग (1964-66) ने राष्ट्रीय एकीकरण एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये राज्यों में एक समान शैक्षणिक ढाँचे के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
  • समवर्ती सूची केंद्र को प्रमुख राष्ट्रीय मानक निर्धारित करने की अनुमति देती है, जबकि राज्य उन्हें स्थानीय संदर्भों के अनुसार अनुकूलित कर सकते हैं, जिससे एकता और विविधता दोनों को बढ़ावा मिलता है।

न्यूनतम मानक तथा समानता सुनिश्चित करना: 

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTI), 2009 पूरे भारत में न्यूनतम स्तर की शिक्षा की गारंटी देता है।
  • शिक्षा को समवर्ती बनाए रखने से केंद्र को कार्यान्वयन की निगरानी करने में सहायता प्राप्त होती है, साथ ही यह भी सुनिश्चित होता है कि वंचित वर्गों को उनके राज्य की परवाह किये बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो।

कौशल तथा रोज़गार का मानकीकरण: 

  • FICCI (भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ) की रिपोर्ट में एक मानकीकृत राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्नातकों के पास अखिल भारतीय रोज़गार बाज़ार के लिये आवश्यक कौशल प्राप्त हो सके।
  • एक समवर्ती सूची राज्यों को व्यावसायिक प्रशिक्षण तैयार करने की अनुमति प्रदान करते हुए एक सामान्य ढाँचा स्थापित करते हुए इसे सुविधाजनक बनाती है।

राष्ट्रीय संस्थानों एवं प्रत्यायन का विनियमन: 

  • शिक्षा को समवर्ती बनाए रखने से केंद्र को इन संस्थानों में निगरानी रखने के साथ-साथ गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने में सहायता प्राप्त होती है, जो देश भर के छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं। 

राष्ट्रीय चिंताओं तथा आपात स्थितियों का समाधान: 

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 डिजिटल साक्षरता तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के क्षेत्रों के लिये रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करती है।
  • जलवायु परिवर्तन जैसी नई राष्ट्रीय चुनौतियों के लिये भी एक एकीकृत शैक्षणिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • एक समवर्ती सूची केंद्र को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम विकसित करने की अनुमति देती है जो राज्य-विशिष्ट चिंताओं को समायोजित करते हुए इन उभरते मुद्दों का समाधान करती है।

समाधान:

सहयोगात्मक संघवाद: 

  • कोठारी आयोग (1964-66) द्वारा सुझाए गए “सहयोगात्मक संघवाद” दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • इससे केंद्र द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय न्यूनतम मानकों को सुनिश्चित किया जा सकेगा, जबकि राज्यों को पाठ्यक्रम, भाषा और शिक्षण-पद्धति में लचीलापन मिलेगा।

परिणाम-आधारित वित्तपोषण: 

  • नीति आयोग द्वारा अपने नए भारत के लिये रणनीति @ 75 दस्तावेज़ में की गई अनुशंसा के अनुसार परिणाम-आधारित वित्तपोषण तंत्र को लागू करना।
  • यह सीखने के परिणामों के आधार पर संसाधनों का आवंटन करता है, तथा राज्यों को शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित करता है।

विकेंद्रीकृत स्कूल प्रबंधन:

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 में परिकल्पित विकेंद्रीकृत स्कूल प्रबंधन संरचनाओं को बढ़ावा देना।
  • इससे स्कूल प्रबंधन समितियों (School Management Committees- SMC) को सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से सशक्त बनाया जाता है, तथा स्थानीय स्वामित्व और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।

शिक्षक प्रशिक्षण एवं स्थानांतरण नीति सुधार:

  • TSR सुब्रमण्यम समिति रिपोर्ट (2009) की सिफारिशों के आधार पर सुधारों का समर्थन करना।
  • इसमें बेहतर शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, पारदर्शी स्थानांतरण नीतियाँ तथा अधिक प्रेरित और प्रभावी शिक्षण बल तैयार करने के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन शामिल हैं।

राज्य-विशिष्ट बेंचमार्क के साथ मानकीकृत राष्ट्रीय मूल्यांकन: 

  • ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की प्रथाओं से प्रेरित होकर, राज्य-विशिष्ट बेंचमार्क के साथ-साथ एक मानकीकृत राष्ट्रीय मूल्यांकन ढाँचा विकसित करना। यह क्षेत्रीय विविधताओं को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय तुलना की अनुमति देता है।

न्यायसंगत पहुँच के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: 

  • विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में न्यायसंगत पहुँच और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिये भारत सरकार के “पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक और शिक्षण मिशन” (Pandit Madan Mohan Malaviya National Mission on Teachers and Teaching- PMMMNMTT) में उल्लिखित रणनीतियों को लागू करना।

राज्य अनुकूलन के साथ राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा: 

  • NCERT द्वारा सुझाए गए अनुसार एक लचीला राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (National Curriculum Framework- NCF) विकसित करना, जिससे राज्यों को इसे अपने विशिष्ट भाषाई और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुसार अनुकूलित करने की अनुमति मिले। यह राष्ट्रीय लक्ष्यों एवं राज्य की ज़रूरतों के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है।

शैक्षिक सुधारों से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें: 

नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी एन्हांस्ड लर्निंग (NPTEL):

  • NPTEL केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक परियोजना है, जिसे देश के सात ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों’ (IIT) द्वारा भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलूरू के साथ मिलकर शुरू किया गया है।    
  • इसे वर्ष 2003 में ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के लिये बनाया गया था। 
  • इसका  उद्देश्य इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रबंधन के क्षेत्र में वेब और वीडियो पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना है।   

समग्र शिक्षा अभियान:

  • यह स्कूली शिक्षा के लिये एक एकीकृत योजना है, जिसमें प्री-स्कूल से लेकर बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा संबंधी सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
  • इसका उद्देश्य समावेशी, न्यायसंगत और सुगम स्कूली शिक्षा प्रदान करना है।
  • यह ‘सर्व शिक्षा अभियान’ (SSA), ‘राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान’ (RMSA) और ‘शिक्षक शिक्षा’ (TE) की तीन योजनाओं को समाहित करती है।
  • इस योजना में 1.16 मिलियन स्कूल, 156 मिलियन से अधिक छात्र और सरकारी तथा सहायता प्राप्त स्कूलों के 5.7 मिलियन शिक्षक (पूर्व-प्राथमिक से वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक) शामिल हैं।
  • इसे केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया जा रहा है। इसमें केंद्र और अधिकांश राज्यों के बीच वित्तपोषण में 60:40 का विभाजन शामिल है। इसे वर्ष 2018 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।

प्रज्ञाता (PRAGYATA):

  • 14 जुलाई, 2020 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री (Union Human Resource Development Minister) ने नई दिल्ली में ऑनलाइन माध्यम से डिजिटल शिक्षा पर ‘प्रज्ञाता’ दिशा-निर्देश (PRAGYATA Guidelines) जारी किये।
  • ‘प्रज्ञाता’ दिशा-निर्देश विद्यार्थियों के दृष्टिकोण को आधार बनाकर विकसित किये गए हैं जो COVID-19 के मद्देनज़र जारी लॉकडाउन के कारण घरों पर मौजूद छात्रों के लिये ऑनलाइन/डिजिटल शिक्षा पर केंद्रित हैं।
  • डिजिटल/ऑनलाइन शिक्षा पर जारी ये दिशा-निर्देश शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये ऑनलाइन शिक्षा को आगे बढ़ाने की विस्तृत कार्य योजना प्रदान करते हैं।
  • इन दिशा-निर्देशों में उन छात्रों के लिये जिनके पास डिजिटल उपकरण हैं और जिनके पास डिजिटल उपकरण तक सीमित या कोई पहुँच नहीं है, दोनों के लिये, एनसीईआरटी के वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर के उपयोग पर ज़ोर दिया गया है।

मध्याह्न भोजन योजना:

  • मध्याह्न भोजन योजना (शिक्षा मंत्रालय के तहत) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी। 
  • यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है। 
  • इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है। 
  • वर्ष 2021 में इसका नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण’ योजना (पीएम पोषण योजना) कर दिया गया और इसमें पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं के बालवाटिका (3–5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे) के छात्र भी शामिल हैं। 
  • इसका उद्देश्य भूख और कुपोषण समाप्त करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति में वृद्धि, जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं को ज़मीनी स्तर पर रोज़गार प्रदान करना। 

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ:

  • इसे जनवरी 2015 में लिंग चयनात्मक गर्भपात (Sex Selective Abortion) और गिरते बाल लिंग अनुपात (Declining Child Sex Ratio) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, जो 2011 में प्रति 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ था।
  •  यह महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है।
  •  इसका उद्देश्य लिंग आधारित चयन पर रोकथाम, बालिकाओं के अस्तित्व और सुरक्षा को सुनिश्चित करना, बालिकाओं के लिये शिक्षा की उचित व्यवस्था तथा उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना, बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करना।

पीएम श्री स्कूल (PM SHRI School):

  • यह देश भर में 14500 से अधिक स्कूलों के उन्नयन और विकास के लिये केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • इसका उद्देश्य केंद्र सरकार/ राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार/स्थानीय निकायों द्वारा प्रबंधित स्कूलों में से चयनित मौजूदा स्कूलों को मज़बूत करना है।

समग्र शिक्षा योजना 2.0:

  • योजना की प्रत्यक्ष पहुँच को बढ़ाने के लिये सभी बाल-केंद्रित हस्तक्षेप छात्रों को सीधे सूचना प्रौद्योगिकी-आधारित प्लेटफॉर्म पर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) मोड के माध्यम से समय-समय पर शिक्षा का अधिकार पात्रताके तहत पाठ्यपुस्तक, ड्रेस  और परिवहन भत्ते प्रदान किये जाएंगे।

 

 

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