‘नोटा‘ अर्थात इनमें से कोई नहीं एक चुनावी विक्ल्प है जो मतदाताओं को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में खड़े विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी को नकारने का अधिकार देता है और राजनीतिक दलों को बेहतर उम्मीदवार प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करता है।
नोटा से पूर्व प्रावधान
वर्ष 2013 तक यदि मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्याशियों से असंतुष्ट है तो वह चुनाव संचालन के नियम 49-0 के तहत पोलिंग बूथ में फाॅर्म भरकर इस असंतोष को व्यक्त कर सकता था, लेकिन इस व्यवस्था से मतदाता के गोपनीय मतदान के अधिकार का हनन होता था।
विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) में न चुनने के अधिकार की वकालत की गयी लेकिन व्यवहारिक चुनौती के कारण इसे लागू नहीं किया गया।
नोटा कब लागु हुआ
वर्ष 2013 में नागरिक अधिकार संगठन पी.यू.सी.एल. द्वारा बैलेट पेपर या ई.वी.एम. पर नोटा के विकल्प का शामिल करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टी बनाम भारत संघ 2013
तत्पश्चात भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को लोकसभा एवं विधानसभा के चुनावों में नोटा का विकल्प शामिल करने का निर्देश दिया।
अतः भारतीय चुनाव आयोग अनुच्छेद 324 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए प्रथम बार वर्ष 2013 चार प्रांतों यथा छत्तीसगढ़ मिजोरम, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं दिल्ली संघशासित प्रदेश के विधान सभा चुनावों में ‘नोटा‘ के विकल्प को शामिल किया।
अन्य लोकतांत्रिक देशों मे नोटा के समान प्रावधान
यूरोपीय देश:फिनलैण्ड, स्पेन, स्वीडन, फ्रांस, बेल्जियम, ग्रीस अपने मतदाताओं को ‘नोटा‘ के समान वोट डालनेद की अनुमति देते हैं।
अमेरीका:अमेरीका में बैलेट पेपर पर औपचारिक नोटा विकल्प नहीं है।
कुछ अमेरीकी प्रांत अपने मतदाताओं को ‘राइट-इन-वोट‘ का अधिकार देते हैं अर्थात मतदाता अपने असंतोष की अभिव्यक्ति ‘इनमें से कोई नहीं‘या वैकल्पिक नाम लिख कर कर सकते हैं।
कोलम्बिया, यूक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश में भी नोटा डालने का चुनावी विकल्प है।
अनुच्छेद 324- भारतीय चुनाव आयोग संसद एवं विधानसभा चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियन्त्रण की शक्ति देता है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।
नोटा की आवश्यकता क्यों?
1. ‘नोटा‘ मतदाताओं की स्पष्ट अस्वीकृति की सार्वजनिक अभिव्यक्ति है और यह राजनीतिक पार्टियों के स्वेच्छाचारी व्यवहार को नियन्त्रित करता है।
2. चुनावों से दूर रहने के बजाय नोटा का उपयोग यह सुनिश्चित कता है कि वोटों का दुरूपयोग नहीं होगा।
सम्बन्धित मुद्दे:-
वर्तमान में नोटा का प्रतीकात्मक महत्व है और यह किसी भी सीट के चुनाव परिणाम पर प्रभाव नहीं डाल सकती है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी सीट पर 100 में से 99 वोट नोटा के पक्ष में हैं और मात्र 1 वोट प्रत्याशी के पक्ष में है, तो वह विजेता होगा।
(ADR) एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म की एक रिसर्च के अनुसार पिछले 5 वर्षो में विधान सभा एवं लोकसभा के चुनावों में कुल 1.29 करोड़ वोट ‘नोटा‘ के पक्ष में थे।
नोटा एक दंत विहीन बाघ साबित हुआ है क्योंकि लगातार आपराधिक पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधियों की बढ़ती संख्या इस ओर इशारा करती है कि नोटा राजनीतिक दलों पर नैतिक प्रभ्ज्ञाव डालने में विफल रहा है।
आगे की राह
चुनाव आयोग को उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहाँ बहुमत नोटा के पक्ष में है, नए सिरे से चुनाव के आयोजन पर विचार करना चाहिए।
उदाहरण के लिए, 2018 में माराष्ट चुनाव आयोग ने एक आदेश जारी किया कि यदि राज्य स्तरीय चुनाव में बहुमत नोटा के पक्ष में होगा, तब चुनाव पुनः कराये जायेंगे
नोटा से कम वोट पाने वाले प्रत्याशियों के पुनः प्रत्याशी बनने पर रोक लगाना।
उदाहरण के लिए हरियाणा चुनाव आयोग ने नगरनिगम स्तर पर नोटा से कम वोट पाने वाले प्रत्याशी को पुनः प्रत्याशी बनने के अयोग्य घोषित किया है।